दोस्तों आज कि इस पोस्ट में आप सब को बताऊंगा कि सोकपिट कैसे बनाया जाता है।
सोकपिट (Soakpit) : जहां पर सैप्टिक टैंक से निकलने वाले पानी की उचित जगह न होने के कारण खुला न छोड़ा जा सकता है या कृषि के कार्य में प्रयोग न किया जा रहा हो इस गन्दे पानी के समापन के लिए Soak pit बनाए जाते है। इन को गोलाकार या आयताकार आवश्यकतानुसार गहराई में बनाया जा सकता है। इस के अन्दर टुटी हुई ईटों के टुकड़े भर दिये जाते है। इसका धरातल कच्चा रखा जाता है परन्तु इस को ऊपर से कई बार कवर कर देते है। सुखी ईंटों की चिनाई व धरातल कच्चा होने के कारण इसकी मिट्टी पानी को चुस लेती है। इस प्रकार इसके अन्दर पानी नीचे जमीन में रिसता रहता है। अतः इसको Soak pit कहते है।
सैसपूल (Cess Pool) : यह भी सैप्टिक टैंक व सोकपिट टैंक जैसा • ही एक टैंक होता है। परन्तु इसमें थोड़ी सी भिन्नता होती है। इसका प्रयोग भी उन स्थानो पर किया जाता है जहां पर सार्वजनिक सीवर उपलब्ध नहीं होता। इस टैंक के साथ ही / ऊपर ही लैट्रीन बना दी जाती है और उसे टैंक से जोड़ दिया जाता है तथा टैंक की दीवार सुखी ईंटों से बना दी जाती है या कई बार टैंक में टूटी ईंटें भर देते है ताकि यह बैठ न सके। इसे कुइ सिस्टम भी कहते है। इसमें ठोस व तरल दोनों प्रकार का मल-मूत्र जाता रहता है और जब वह भर जाता है तो दूसरा टैंक बनाना पड़ता है। वैसे यह काफी समय तक कार्य करते है यदि इन में पानी का प्रयोग कम किया जाये तो इनकी कार्य क्षमता और भी बढ़ जाती है क्योंकि पानी मिट्टी में रिसता रहता है जिस से धीरे-2 मिट्टी की पानी को सोकने का प्रयोग किया जाता है, उसे ट्रैप या पाश कहते है। इसकी आकृति इस प्रकार की बनी होती है कि इसमें गहराई वाला मोड़ बना होता है, जिसमें पानी हमेशा रहता है और इस पानी को वाटर सील कहते है। इसके मोड़ की जितनी गहराई अधिक होगी, वाटर सील उतनी ही अधिक बनती है। एक अच्छी ट्रैप वही होती है, जिसका वाटर सील अधिक होती है
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it Very Interesting Article . Thanks for Sharing it
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